
आर्मी चीफ के लाउंज से 1971 सरेंडर पेंटिंग हटाने पर विवाद: क्या यह सही निर्णय था?
16 दिसंबर 2024 को इंडियन आर्मी ने आर्मी चीफ के लाउंज में मौजूद 1971 सरेंडर पेंटिंग को एक नई पेंटिंग से रिप्लेस कर दिया। इसके बाद, सरकार और सेना को विपक्ष और कई मिलिट्री वेटरन्स की आलोचना का सामना करना पड़ा, जिससे यह एक बड़ी कंट्रोवर्सी बन गई।
आज, सेना के हेडक्वार्टर से वह ऐतिहासिक तस्वीर हटा दी गई, जिसमें पाकिस्तान की सेना भारतीय सेना के समक्ष आत्मसमर्पण कर रही थी। इस निर्णय के पीछे की वजह और इसके प्रभावों पर चर्चा करने के लिए आइए इस पूरे मामले को विस्तार से समझते हैं।
1971 का युद्ध: भारत की ऐतिहासिक विजय
1971 की भारत-पाकिस्तान युद्ध भारतीय सेना के इतिहास में एक ऐतिहासिक मील का पत्थर था।
- 16 दिसंबर को पूरा देश विजय दिवस के रूप में मनाता है।
- इस युद्ध के दौरान लगभग 3,900 भारतीय सैनिक शहीद हुए और 9,851 घायल हुए थे।
- 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान ने ढाका में “इंस्ट्रूमेंट ऑफ सरेंडर” पर हस्ताक्षर किए।
- इस युद्ध के परिणामस्वरूप, 93,000 से अधिक पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना के समक्ष आत्मसमर्पण किया और बांग्लादेश का गठन हुआ।
भारतीय सेना की इस ऐतिहासिक विजय को दर्शाने के लिए आर्मी चीफ के लाउंज में 1971 सरेंडर पेंटिंग स्थापित की गई थी। लेकिन, हाल ही में इस पेंटिंग को “कर्म क्षेत्र” (Field of Deeds) नामक नई पेंटिंग से बदल दिया गया है।
नई पेंटिंग और विवाद
क्या नई पेंटिंग में दिखाया गया है?
नई पेंटिंग इंडियन आर्मी की आधुनिक युद्ध क्षमता को प्रदर्शित करती है:
- पैंगोंग लेक (चीन-भारत सीमा पर स्थित) को प्रमुखता से दिखाया गया है।
- इसमें भारतीय सेना के आधुनिक सैन्य उपकरण जैसे टैंक, हेलीकॉप्टर, बोट्स और ऑल-टेरेन व्हीकल्स को दर्शाया गया है।
- इसके अलावा, इसमें माइथोलॉजिकल फिगर्स जैसे चाणक्य और भगवान कृष्ण (अर्जुन के रथ के सारथी के रूप में) को शामिल किया गया है।
विपक्ष और मिलिट्री वेटरन्स की नाराजगी
इस बदलाव पर 1971 युद्ध के वेटरन्स और विपक्ष ने कड़ी नाराजगी जताई है।
- पूर्व नॉर्दन कमांडर ने इसे “भारत की सबसे बड़ी सैन्य जीत को कमजोर करने का प्रयास” करार दिया।
- उनका मानना है कि यह पेंटिंग भारत की पहली बड़ी जीत और पाकिस्तान पर सैन्य प्रभुत्व का प्रतीक थी, जिसे हटाकर भारतीय सेना की इतिहास से दूरी बढ़ाने की कोशिश की गई है।
भारतीय सेना का जवाब
भारतीय सेना ने इस विवाद पर सफाई देते हुए कहा कि:
- यह पेंटिंग सिर्फ हटाई नहीं गई, बल्कि इसे एक बेहतर स्थान – मानेकशॉ सेंटर, नई दिल्ली में स्थानांतरित किया गया है।
- मानेकशॉ सेंटर में अधिक लोग आते हैं, जिससे यह पेंटिंग ज्यादा लोगों तक पहुंच सकेगी।
- नई पेंटिंग भारतीय सेना की बदलती प्राथमिकताओं को दर्शाती है, खासकर चीन के बढ़ते प्रभाव के खिलाफ एक मजबूत संदेश भेजती है।
1971 युद्ध की पेंटिंग हटाने का क्या मतलब है?
1. भारतीय सेना का नया फोकस
- नई पेंटिंग भारतीय सेना की पारंपरिक युद्ध रणनीति से आधुनिक युद्ध क्षमता की ओर बदलाव को दर्शाती है।
- यह चीन के खिलाफ भारत की तैयारियों को मजबूत दिखाने का प्रयास हो सकता है।
2. क्या इतिहास से छेड़छाड़ की जा रही है?
- कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि इतिहास को सुरक्षित रखना और नई चुनौतियों के लिए तैयार रहना – दोनों जरूरी हैं।
- 1971 युद्ध की यादों को संरक्षित करना उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना कि भविष्य की रणनीति को विकसित करना।
3. सेना का आधिकारिक दृष्टिकोण
भारतीय सेना के मुताबिक, यह बदलाव केवल एक सौंदर्यात्मक परिवर्तन नहीं, बल्कि रणनीतिक दृष्टि का प्रतीक है।
- सेना के लिए हर चित्र एक संदेश देता है, और यह चित्र भारत की बदलती सैन्य नीति को दर्शाता है।
- नई पेंटिंग तकनीकी उन्नति और दार्शनिक विरासत के मिश्रण को भी प्रस्तुत करती है।
निष्कर्ष: यह बदलाव सही था या नहीं?
1971 की पेंटिंग को स्थानांतरित करने का निर्णय सही था या नहीं – यह पूरी तरह से आपके दृष्टिकोण पर निर्भर करता है।
- क्या यह भारतीय सेना के बढ़ते रणनीतिक बदलाव को दर्शाता है?
- या फिर यह भारत की ऐतिहासिक जीत को कम आंकने का प्रयास है?
आपकी राय क्या है?
क्या आपको लगता है कि इंडियन आर्मी द्वारा 1971 युद्ध की ऐतिहासिक पेंटिंग को स्थानांतरित करना और नई पेंटिंग लगाना एक सही कदम था? या फिर यह एक गलत निर्णय है?
अपनी राय नीचे कमेंट सेक्शन में जरूर शेयर करें।