हाई कोर्ट का फैसला: A soldier with diabetes cannot be denied disability pension.

1. परिचय

हेलो दोस्तों, आज हम एक महत्वपूर्ण फैसले की बात करने जा रहे हैं जो आर्मी के जवानों के लिए नजीर साबित हो सकता है। अक्सर देखा गया है कि जब कोई सैनिक किसी स्वास्थ्य समस्या के कारण अपनी सेवा छोड़ता है, तो उसे पेंशन लाभ देने से मना कर दिया जाता है, यह कहकर कि यह समस्या लाइफस्टाइल डिसीज (जीवनशैली से जुड़ी बीमारी) है। यह लेख इसी मुद्दे पर आधारित है और पंजाब व हरियाणा हाई कोर्ट द्वारा दिए गए हालिया फैसले की व्याख्या करेगा।

A soldier with diabetes cannot be denied disability pension.

2. लाइफस्टाइल डिसीज और डिसेबिलिटी पेंशन का विवाद

कई बार, जब सैनिक को डायबिटीज या किसी अन्य बीमारी के कारण मेडिकल कैटेगरी में रखा जाता है, तो उसे पेंशन से वंचित कर दिया जाता है। सेना का दावा होता है कि यह बीमारी सैनिक की जीवनशैली के कारण है, और इसलिए पेंशन का लाभ नहीं मिलना चाहिए।

अखबार की हेडलाइन का महत्व:

“सोल्जर विद डायबिटीज कैन नॉट बी डिनाइड डिसेबिलिटी पेंशन” — इस हेडलाइन ने पूरे मामले की गंभीरता को दर्शाया। यह दर्शाता है कि किसी भी सैनिक को केवल इस आधार पर डिसेबिलिटी पेंशन से वंचित नहीं किया जा सकता कि उसकी बीमारी को जीवनशैली से जोड़ा जा रहा है।

3. मामले का विवरण

यह मामला एक सैनिक का है जिसे टाइप 2 डायबिटीज और गंभीर अवसाद (डिप्रेसिव एपिसोड) के कारण अपनी सेवा से निवृत्त होना पड़ा। उसे मेडिकल बोर्ड द्वारा इन बीमारियों के आधार पर सेवा से अलग कर दिया गया, लेकिन डिसेबिलिटी पेंशन देने से मना कर दिया गया।

मेडिकल बोर्ड का दृष्टिकोण:

मेडिकल बोर्ड का कहना था कि डायबिटीज और अवसाद सैनिक की खराब जीवनशैली के कारण हैं, जिसमें खराब खान-पान और फिजिकल एक्टिविटी की कमी शामिल है।

4. हाई कोर्ट का फैसला और उसके बिंदु

पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने इस मामले में महत्वपूर्ण बिंदुओं पर निर्णय दिया:

  • बिंदु 1: डिसेबिलिटी रिकॉर्ड न होने की स्थिति में मान्यता
    अगर सैनिक की भर्ती के समय किसी प्रकार की डिसेबिलिटी रिकॉर्ड नहीं की गई है, तो इसे माना जाना चाहिए कि यह समस्या सेना की सेवा के दौरान हुई है, जब तक कि इसके विपरीत सबूत न हो।
  • बिंदु 2: मेडिकल बोर्ड की राय का महत्व
    कोर्ट ने कहा कि केवल मेडिकल बोर्ड की राय के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि बीमारी सैनिक की जीवनशैली से जुड़ी है। अगर ऐसा है तो इसका प्रमाण भी प्रस्तुत करना होगा।
  • बिंदु 3: परिवारिक इतिहास का तर्क
    कोर्ट ने यह भी कहा कि बीमारी को परिवारिक इतिहास के कारण नहीं माना जा सकता, जब तक कि इसके ठोस प्रमाण न हो।
  • बिंदु 4: आर्म्ड फोर्सेज का मनोबल और सुरक्षा
    कोर्ट ने कहा कि अगर सैनिकों को सेवा के दौरान किसी भी प्रकार की बीमारी हो जाती है और उसे पेंशन से वंचित कर दिया जाता है, तो इससे सेना का मनोबल गिर सकता है।
  • बिंदु 5: इनवैलिड आउट पॉलिसी और पेंशन का लाभ
    कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर किसी सैनिक को इनवैलिड आउट (अक्षम घोषित करके सेवा से बाहर) किया जाता है, तो उसे कम से कम 50% डिसेबिलिटी पेंशन का लाभ मिलना चाहिए।

5. लाइफस्टाइल डिसीज और प्रूफ का मामला

A soldier with diabetes cannot be denied disability pension.

अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि डायबिटीज और अवसाद जैसी बीमारियां सैनिक की जीवनशैली का परिणाम हैं। लेकिन हाई कोर्ट ने कहा कि इसका ठोस प्रमाण होना चाहिए। सैनिकों को कठोर प्रशिक्षण और नियमित फिजिकल एक्टिविटी से गुजरना पड़ता है, ऐसे में यह कहना कि बीमारी केवल जीवनशैली का परिणाम है, तर्कसंगत नहीं है।

प्रमाण की जरूरत:

अगर सेना यह दावा करती है कि बीमारी जीवनशैली से जुड़ी है, तो उसे यह भी साबित करना होगा कि सैनिक की खान-पान की आदतें खराब थीं या उसने फिजिकल एक्टिविटी में कमी की थी।

6. फैसले का प्रभाव और महत्व

यह फैसला भविष्य में ऐसे ही मामलों के लिए मिसाल बनेगा। हाई कोर्ट ने साफ कहा कि भर्ती के समय मेडिकल बोर्ड द्वारा सैनिक को पूरी तरह फिट घोषित किया गया था, और अगर बाद में कोई बीमारी विकसित होती है, तो इसके लिए सैनिक को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

भविष्य की जजमेंट्स में संभावित प्रभाव:

इस फैसले का जिक्र भविष्य में अन्य मामलों में भी हो सकता है, खासकर जब कोई केस लाइफस्टाइल डिसीज के आधार पर पेंशन से वंचित करने का हो।

7. सैनिकों के लिए यह फैसला क्यों महत्वपूर्ण है?

इस फैसले ने सैनिकों के अधिकारों को मजबूत किया है। अब अगर कोई सैनिक सेवा के दौरान बीमार हो जाता है, तो उसे पेंशन से वंचित नहीं किया जा सकेगा, जब तक कि इसके विपरीत ठोस प्रमाण न हो।

आर्मी मोराल का सवाल:

सैनिकों के मनोबल को बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि उन्हें उचित पेंशन और सुरक्षा का लाभ दिया जाए, खासकर तब जब वे सेवा में रहते हुए अपनी सेहत को खतरे में डालते हैं।

8. निष्कर्ष

इस लेख में हमने देखा कि कैसे हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया और सैनिकों के हितों की रक्षा की। यह फैसला न केवल सैनिकों के अधिकारों को मान्यता देता है, बल्कि भविष्य में होने वाले फैसलों के लिए भी एक मिसाल पेश करता है।

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जय हिंद, जय भारत

Hi im Rajani Singh. Helping veterans and ex-servicemen is a noble and impactful cause. These individuals have dedicated a significant portion of their lives to serving their country, often facing immense physical and emotional challenges. Supporting them as they transition back into civilian life can involve offering job opportunities, mental health care, housing, and community support. Many veterans struggle with post-traumatic stress disorder (PTSD) or physical disabilities, and ensuring they have access to quality healthcare and rehabilitation services is crucial. Educational programs and skill development initiatives can also help them reintegrate into the workforce. Moreover, creating a supportive and understanding community helps veterans regain a sense of belonging and purpose. By advocating for their needs, we honor their service and sacrifices, ensuring they receive the care and respect they deserve.

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