सरकार में फाइनेंशियल मैटर्स और पूर्व सैनिकों का वेलफेयर: एक विस्तृत विश्लेषण
मुख्य विषय
यह लेख सरकार की वित्तीय नीति, विशेष रूप से पूर्व सैनिकों की पेंशन और उससे जुड़े मसलों जैसे कि क्यूटीई (Commutation Table Equivalent) और रिकवरी प्रक्रिया, पर केंद्रित है। लेख में सरकार के रवैये और नीति निर्माण की प्रक्रिया पर चर्चा की गई है।
मुख्य बिंदु
- सरकार की वित्तीय नीति और उसकी मानसिकता
- सरकार की नीति आमतौर पर “आने दो, रोक मत लगाओ” पर आधारित होती है।
- इनकमिंग (आय) पर कोई रोक-टोक नहीं होती, लेकिन आउटगोइंग (व्यय) पर कई स्तरों की अनुमति लेनी पड़ती है।
- यह प्रक्रिया सैनिकों और पेंशनभोगियों के लिए बाधाएं उत्पन्न करती है।
- पूर्व सैनिकों पर वित्तीय बोझ
- पूर्व सैनिकों की पेंशन से अतिरिक्त रिकवरी करना अनैतिक है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले सैनिक कोर्ट-कचहरी के चक्कर में नहीं पड़ते, जिससे उनका शोषण आसान हो जाता है।
- अन्य राज्यों (जैसे गुजरात और केरल) में 12-13 वर्षों के बाद रिकवरी बंद कर दी गई है, लेकिन केंद्र सरकार ने अब तक ऐसा कदम नहीं उठाया।
- क्यूटीई और वित्तीय असमानता
- 1971 में शुरू की गई क्यूटीई स्कीम में पुरानी टेबल के अनुसार पेंशन की खरीदारी दर (परचेज वैल्यू) अधिक थी।
- 2006 में इसे संशोधित कर दरें कम कर दी गईं, जिससे सैनिकों को कम लाभ मिलने लगा।
- उदाहरण: अगर किसी सैनिक की बेसिक पेंशन ₹66,000 है, तो नई दरों के अनुसार उसे ₹15 लाख का नुकसान हो रहा है।
- इंटरेस्ट रेट और पेंशनर की स्थिति
- पहले ब्याज दरें 12-14% तक थीं, जो अब घटकर 6-7% हो गई हैं।
- इसके बावजूद रिकवरी प्रक्रिया जारी है, जो पेंशनरों के लिए मुश्किलें बढ़ा रही है।
- कानूनी और सामाजिक उपाय
- सरकार की निष्क्रियता के कारण सैनिकों को कोर्ट का सहारा लेना पड़ता है।
- हाल ही में चंडीगढ़ हाई कोर्ट ने रिकवरी पर स्टे दिया है।
- रक्षा मंत्रालय और राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपकर राहत दिलाने की अपील की जा सकती है।
मुख्य चिंताएं
- सैनिकों का शोषण:
जो सैनिक देश की रक्षा के लिए अपना सर्वोत्तम समय देते हैं, उनसे रिटायरमेंट के बाद इस प्रकार की रिकवरी करना बेहद अनुचित है। - नैतिक जिम्मेदारी का अभाव:
सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है कि वह सैनिकों और उनके परिवारों को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करे। - पेंशन प्रणाली में असमानता:
अन्य राज्यों की तुलना में केंद्र सरकार की पेंशन प्रणाली में पारदर्शिता और समानता की कमी है।
संभावित समाधान
- कोर्ट का सहारा लेना
- कोर्ट में याचिका दायर कर सैनिकों के लिए न्याय सुनिश्चित करना।
- पेंशन से जुड़ी नीतियों की समीक्षा करवाना।
- सामाजिक और राजनीतिक दबाव
- जन जागरूकता अभियान चलाकर सरकार पर दबाव बनाना।
- सांसदों और अन्य प्रतिनिधियों से मुलाकात कर इस मुद्दे को संसद में उठाना।
- नीति में बदलाव
- पुरानी क्यूटीई टेबल और उच्च ब्याज दरों को फिर से लागू करना।
- ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले सैनिकों को अतिरिक्त सहायता प्रदान करना।
निष्कर्ष
सैनिकों का सम्मान केवल शब्दों तक सीमित नहीं होना चाहिए। उनकी वित्तीय सुरक्षा और वेलफेयर सुनिश्चित करना सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है। यह आवश्यक है कि सरकार इस मुद्दे पर तुरंत संज्ञान ले और इसे सुलझाने के लिए कदम उठाए।
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