भारतीय सेना में कोर्ट मार्शल और उससे जुड़े मुद्दे
परिचय
भारतीय सेना में अनुशासन बनाए रखने और अपराधियों को दंडित करने के लिए कोर्ट मार्शल की व्यवस्था है। यह प्रणाली सैनिकों के लिए न्याय प्रदान करने के उद्देश्य से बनाई गई है। लेकिन कई बार, यह न्यायिक प्रक्रिया सैनिकों के अधिकारों और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है। विशेष रूप से, समरी कोर्ट मार्शल (Summary Court Martial – SCM) को लेकर कई सवाल उठते हैं।
SCM का परिचय और उसकी प्रक्रिया
समरी कोर्ट मार्शल का मुख्य उद्देश्य है, अनुशासनात्मक कार्रवाई को जल्दी और सरल तरीके से अंजाम देना। हालांकि, यह प्रक्रिया कई बार न्याय की अवधारणा को चुनौती देती है।
- अधिकारियों का प्रभुत्व:
- समरी कोर्ट मार्शल में आरोप लगाने वाला अधिकारी ही जज होता है।
- एक व्यक्ति अपने ही मामले में जज नहीं हो सकता, लेकिन SCM में यह प्रथा आम है।
- वकील का अभाव:
- SCM में अभियुक्त को वकील उपलब्ध नहीं कराया जाता।
- अभियुक्त अक्सर अपने अधिकारों से अनजान होते हैं और उन्हें अपने पक्ष में कुछ कहने का पर्याप्त मौका नहीं मिलता।
- भाषा की समस्या:
- चार्जशीट और अन्य दस्तावेज़ अंग्रेज़ी में होते हैं, जो कई सैनिकों के लिए समझना मुश्किल होता है।
- सैनिक से जबरदस्ती दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर करवाए जाते हैं।
SCM पर सर्वोच्च न्यायालय का दृष्टिकोण
2016 में, सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया ने लांस नायक विशवप्रिय सिंह बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के मामले में फैसला सुनाया कि समरी कोर्ट मार्शल केवल अत्यधिक गंभीर परिस्थितियों में ही होना चाहिए।
- प्रमुख बिंदु:
- SCM को रूटीन प्रक्रिया के रूप में इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
- अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए उचित न्यायिक प्रक्रिया जैसे जनरल कोर्ट मार्शल (GCM) या डिस्ट्रिक्ट कोर्ट मार्शल (DCM) का उपयोग किया जाना चाहिए।
- सैनिकों को अपने बचाव का पूरा मौका दिया जाना चाहिए।
SCM की प्रमुख समस्याएँ
- न्याय का उल्लंघन:
- प्राकृतिक न्याय का पहला नियम है कि किसी भी व्यक्ति को सज़ा देने से पहले उसे अपना पक्ष रखने का पूरा मौका दिया जाए।
- SCM में यह नियम अक्सर तोड़ा जाता है।
- रिसोर्स की कमी:
- जनरल कोर्ट मार्शल (GCM) की प्रक्रिया में समय और संसाधन अधिक लगते हैं।
- अधिकारियों की कमी के कारण सेना अक्सर SCM का सहारा लेती है।
- अपराधियों को बचाव का अधिकार नहीं:
- SCM में अभियुक्त को अपना वकील चुनने का अवसर नहीं दिया जाता।
- अभियुक्त को पूरी प्रक्रिया समझने और उचित कानूनी सहायता लेने में कठिनाई होती है।
- अत्यधिक दबाव और डर का माहौल:
- SCM के दौरान अभियुक्त पर अन्य अधिकारियों का दबाव होता है।
- बिना किसी सहायता के सैनिक अकेले खड़े होते हैं, और उन्हें डर के कारण अपनी गलती कबूल करनी पड़ती है।
उदाहरण: अजीब न्याय प्रणाली
- अजमल कसाब, जिसने मुंबई हमलों के दौरान निर्दोष नागरिकों की जान ली, उसे भी अपने बचाव का पूरा मौका दिया गया।
- लेकिन SCM में, भारतीय सेना के सैनिक को अपना पक्ष रखने तक का उचित अवसर नहीं मिलता।
समस्या के समाधान के सुझाव
- परमानेंट कोर्ट मार्शल की स्थापना:
- हर राज्य की राजधानी में स्थायी कोर्ट मार्शल सेंटर स्थापित किए जाएँ।
- इससे सैनिकों को अपने बचाव के लिए वकील और न्यायिक प्रक्रिया तक पहुंचने में आसानी होगी।
- एकल न्यायाधीश प्रणाली:
- जनरल कोर्ट मार्शल में पाँच अधिकारियों की बजाय एक योग्य जज का प्रावधान किया जाए।
- इससे प्रक्रिया तेज़ और सस्ती होगी।
- भाषा की समस्या का समाधान:
- चार्जशीट और अन्य दस्तावेज़ अभियुक्त की भाषा में अनुवादित किए जाएँ।
- अभियुक्त को अपनी भाषा में बचाव करने का अधिकार दिया जाए।
- वकील की उपलब्धता:
- अभियुक्त को सरकारी वकील मुहैया कराया जाए, जैसा कि सामान्य आपराधिक मामलों में होता है।
- वकीलों की नियुक्ति के लिए एक स्थायी प्रणाली विकसित की जाए।
- इंटरनेट और डिजिटल सुविधाओं का उपयोग:
- रिमोट लोकेशन्स पर भी डिजिटल माध्यम से कोर्ट मार्शल की कार्यवाही संचालित की जाए।
- वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से वकील और अभियुक्त जुड़ सकें।
- प्रशिक्षण और जागरूकता:
- सैनिकों को उनके अधिकारों और न्यायिक प्रक्रियाओं के बारे में जानकारी दी जाए।
- अनुशासनात्मक मामलों के लिए अधिकारियों को विशेष कानूनी प्रशिक्षण दिया जाए।
समाप्ति
समरी कोर्ट मार्शल एक आवश्यक न्यायिक प्रक्रिया हो सकती है, लेकिन इसका दुरुपयोग सैनिकों के अधिकारों का हनन करता है। भारतीय सेना को न्याय के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए अपनी प्रक्रिया में सुधार करना चाहिए।
- परमानेंट कोर्ट मार्शल, एकल न्यायाधीश प्रणाली, और कानूनी सहायता जैसे कदम न्यायिक प्रक्रिया को अधिक प्रभावी और निष्पक्ष बना सकते हैं।
- जब एक सामान्य अपराधी को बचाव का अधिकार मिल सकता है, तो भारतीय सैनिक, जो देश के लिए अपने प्राण न्योछावर करते हैं, उन्हें भी यह अधिकार मिलना चाहिए।
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