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सिपाही की पेंशन हवलदार से भी अधिक: ORP की हकीकत और समस्याएं
ORP (One Rank One Pension) का मुद्दा भारतीय सेना और अर्धसैनिक बलों में एक गर्मागर्म विषय बना हुआ है। इस नीति का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि समान रैंक के सभी पेंशनरों को समान पेंशन मिले। लेकिन इस नीति ने सिपाही और हवलदार के बीच की पेंशन असमानता को और बढ़ा दिया है। हाल ही में, कुछ हवलदारों ने शिकायत की है कि उनकी पेंशन सिपाही से भी कम हो गई है, जो इस नीति की विफलता को दर्शाता है।
पेंशन में असमानता का मुद्दा
पेंशन का मुद्दा हमेशा से सेना के जवानों के लिए महत्वपूर्ण रहा है। खासकर उन जवानों के लिए जो अपनी सेवा के दौरान गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं या जिनकी सेवा समाप्त हो जाती है। ORP के तहत, सरकार ने यह वादा किया था कि सभी रैंक के पेंशनरों को समान पेंशन मिलेगी। लेकिन अब ऐसा लगता है कि ORP ने हवलदार और सिपाही के बीच की पेंशन में असमानता को और बढ़ा दिया है।
उदाहरण के लिए, एक ईमेल में एक MSCPI हवलदार ने अपनी पेंशन की बात की है। उन्होंने लिखा है कि उन्हें वर्तमान में 20,200 रुपये पेंशन मिल रही है। यह देखकर उन्होंने सवाल उठाया कि क्या उनकी पेंशन भविष्य में कभी बढ़ेगी। यह सवाल महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह बताता है कि वर्तमान में पेंशन सिस्टम में क्या चल रहा है।
2016 के बाद की स्थिति
2016 में जब सातवां वेतन आयोग लागू हुआ, तब यह उम्मीद की गई थी कि इससे पेंशन की स्थिति में सुधार होगा। लेकिन सच्चाई यह है कि हवलदारों की पेंशन में कोई विशेष सुधार नहीं हुआ है। सिपाही, जिन्हें ACP (Assured Career Progression) या MSCPI हवलदार मिला हुआ है, उनकी पेंशन हवलदारों से अधिक हो रही है। यह एक नए प्रकार की असमानता की ओर इशारा करता है।
सरकार ने यह वादा किया था कि एक ही रैंक के पेंशनरों को समान पेंशन मिलेगी, लेकिन वास्तविकता में यह सिद्धांत विफल हो रहा है। हवलदारों की पेंशन में कमी ने उनके मनोबल को प्रभावित किया है, और यह चिंता का विषय बन चुका है।
नई असमानताओं की ओर
ORP की शुरुआत उन पुराने पेंशनर्स को वर्तमान स्तर तक लाने के लिए की गई थी, लेकिन यह अब नई असमानताएँ पैदा कर रही हैं। इस नीति के अंतर्गत, पेंशनरों के बीच अब भी काफी अंतर है। हवलदारों का कहना है कि उन्हें सिपाही से कम पेंशन मिल रही है, जिससे उनका जीवन यापन मुश्किल हो रहा है।
इस प्रकार, ORP की यह स्थिति हवलदारों के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है। कई हवलदार अब यह सोचने लगे हैं कि क्या वे अपनी सेवा के बाद एक सम्मानजनक जीवन जी पाएंगे या नहीं।
समाज में असमानता का प्रभाव
यह केवल एक पेंशन का मामला नहीं है, बल्कि यह समाज में असमानता की भी एक तस्वीर पेश करता है। जब एक जवान ने अपने जीवन के कई साल देश की सेवा में बिताए हैं, तो उसे इस तरह की पेंशन की उम्मीद नहीं होती। हवलदारों की पेंशन में गिरावट से यह सवाल उठता है कि क्या सरकार ने वाकई में अपने वादे निभाए हैं या नहीं।
आगे का रास्ता
सरकार को चाहिए कि वह ORP की नीति पर पुनर्विचार करे और पेंशनरों के लिए एक ऐसी प्रणाली तैयार करे जो वास्तव में समानता पर आधारित हो। यदि ऐसा नहीं किया गया, तो यह न केवल पेंशनरों के लिए, बल्कि समाज के लिए भी एक बड़ा मुद्दा बन जाएगा।
सारांश के तौर पर, ORP का उद्देश्य जितना अच्छा था, उतनी ही खराब इसकी वास्तविकता है। हवलदारों की पेंशन में आई गिरावट ने उन्हें न केवल आर्थिक बल्कि मानसिक रूप से भी प्रभावित किया है।
सरकार को चाहिए कि वह इस समस्या को गंभीरता से ले और पेंशन प्रणाली में सुधार करे। ऐसा करने से न केवल हवलदारों की स्थिति बेहतर होगी, बल्कि यह एक सशक्त और संतुष्ट समाज की ओर भी ले जाएगा।